Friday, November 1st, 2024

देश के गृहमंत्री की भी नहीं चली राजनीति, इंदौर लोकसभा चुनाव में हार का मतलब राजनीति खत्म

इंदौर
तीन दशक से अधिक समय से भाजपा के कब्जे में चले आ रही इंदौर लोकसभा सीट के बारे में कहा जाता है कि जो नेता यहां से लोकसभा चुनाव हारा, समझो उसकी राजनीति खत्म। पुराने आंकड़ों पर नजर डालें तो यह बात सही नजर भी आती है। वर्ष 1952 से लेकर वर्ष 2019 तक कुल 18 बार लोकसभा चुनाव हुए। इनमें से इक्का-दुक्का मौकों को छोड़ दें तो ज्यादातर में चुनाव के बाद हारे हुए प्रत्याशी का कोई अता-पता ही नहीं चला। यानी वे राजनीति के पटल से गायब हो गए। भाजपा, कांग्रेस ही नहीं अन्य राजनीतिक दलों की भी यही स्थिति है। हारे हुए प्रत्याशियों को संगठन में भले ही जगह मिल गई, लेकिन राजनीति की मुख्यधारा से वे बाहर ही रहे।
 
देश के गृहमंत्री थे, लेकिन फिर नहीं चली राजनीति
कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रकाशचंद्र सेठी ने चार बार इंदौर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे देश के गृहमंत्री भी रहे। उन्होंने वर्ष 1967, 1971, 1980 और 1984 में संसद में इंदौर का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 1989 में वे पहली बार इंदौर लोकसभा क्षेत्र से लोकसभा चुनाव हारे और इसके बाद उनकी राजनीति खत्म हो गई। इस हार के बारे वे किसी बड़ी भूमिका में नजर नहीं आए।

इंदौर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने वर्ष 1952 से वर्ष 2019 तक हुए 18 चुनाव में 11 अलग-अलग प्रत्याशियों को मैदान में उतरा। इनमें से सिर्फ चार ही जीत का परचम लहरा पाए। ये चार कांग्रेसी हैं नंदलाल जोशी, कन्हैयालाल खादीवाला, प्रकाशचंद्र सेठी और रामसिंह वर्मा। इसके अलावा कांग्रेस के झंडे तले मैदान में उतरे नंदकिशोर भट्ट, ललित जैन, मधुकर वर्मा, पंकज संघवी, रामेश्वर पटेल, महेश जोशी, सत्यनारायण पटेल चुनाव में जीत दर्ज नहीं कर सके।

खास बात यह है कि कांग्रेस के झंडे तले जो भी प्रत्याशी इंदौर से लोकसभा चुनाव हारा उसकी राजनीति लगभग खत्म हो गई। चाहे वे प्रकाशचंद्र सेठी हों या अन्य। सत्यनारायण पटेल और पंकज संघवी इस मामले में अपवाद है। सत्यनारायण पटेल को हारने के बाद भी कांग्रेस ने विधायक चुनाव में टिकट दिया। इसी तरह संघवी को भी महापौर चुनाव और विधानसभा चुनाव में मौका मिला। पटेल और संघवी दोनों ही ने दो-दो बार लोकसभा चुनाव लड़ा और दोनों ही बार उन्हें पराजय मिली।

इंदौर लोकसभा सीट पर सबसे बड़ी और छोटी जीत
इंदौर लोकसभा सीट पर सबसे कम मतों से जीत का रिकार्ड पूर्व सांसद होमी दाजी के नाम है। उन्होंने वर्ष 1962 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के रामसिंह भाई वर्मा को सिर्फ छह हजार मतों से हराया था। इसी तरह सबसे बड़ी जीत का रिकार्ड भाजपा के शंकर लालवानी के नाम है। उन्होंने वर्ष 2019 में कांग्रेस के पंकज संघवी को पांच लाख 47 हजार 754 मतों से हराया था।

Source : Agency

आपकी राय

15 + 3 =

पाठको की राय